रविवार, 5 अक्तूबर 2008

हमारा पहला सेमिनार

शुरू से सुनती और देखती आई थी परमार्थ करना और सेवा करना मनुष्य का धरम है। बचपन से ही दूसरो की मदद के लिए हाथ बढाती रही। बिहार में अक्सर बाढ़ आया कराती, गर्ल गाइड थी, श्रमदान करने और खाना, कपडे एकाठा करने का आदेश मिलता था। कॉलेज पहुँची तो अन्सिसी में भरती हुई। रक्तदान करना, विकलांग सहेलियों के पढाई में मदद करना, सिलसिला जारी रहा। भोपाल गैस त्रासदी के दौरान चित्राषा नाम की संस्था बनाई थी। सुधिरजी मौके पर चित्र बनाकर बेचते और पैसे एकाठा करते थे। इतने वर्षों में अनेकों बार राष्ट्रीय आपदाएँ आयीं। हमने स्वयं या किसी संस्था के साथ मिलकर अपना योगदान दिया।अपने मुहल्ले में एक महिला संस्था के साथ जुड़ी, पदाधिकारी भी बनी. अदिति भी अपने स्कूल में नेबरहुड प्रोजेक्ट से जुड़ी थी। बाबूजी वृद्ध लोगों की संस्था से जुड़े है। ३० सितेम्बर २००८ को शाम ६ से ९ बजे दिल्ली के आई आई सी सभागार में अदिति फाउंडेशन का पहला सेमिनार हुआ। वक्ता थे श्री अशोक वाजपयी, श्री विनोद नारायण झा, डॉ नरेश त्रेहन, डॉ रंजना कुमारी और श्री ब्रिजेन्द्र रेही। सेमिनार में बातचीत का विषय था 'क्या स्वयमसेवी संस्थाए आम लोगों के साथ मिल कर दुनिया की तस्वीर बदल सकती है? हमारा मकसद था दिल्ली की सभी स्वयमसेवी संस्थायें एक जत के नीचे मिलकर इस विषय पर सोचे की, जिनके लिए , जिस मकसद से काम किया जा रहा है , वो लाभ लोगों को मिल पा रहा है या नही. आख़िर लोग प्रत्यक्ष रूप से या पारोख्श रूप से भी इससे जुड़े महसूस करते हैं या नहीं? समाज में बदलाव तो सभी की सहभागिता से हो सकती है। जो काम करतें हैं उनसे, और जिनके लिए काम हो रहा है उनसे। कहते हैं न 'बूँद बूँद से समुद्र बनता है'। आयोजन को प्रायोजित किया था हिन्दी अख़बार दैनिक भास्कर ने।