रविवार, 5 अक्तूबर 2008

दिनकर जी 'कुरुषेत्र ' में

आशा के प्रदीप को जलाये चलो धरमराज,
एक दिन होगी मुक्त भूमि रनभीती से
भावना मनुष्य की न राग में रहेगी लिप्त ,
सेवित रहेगा नही जीवन अनीति से

हार से मनुष्य की न महिमा घटेगी और
तेज न बढेगा किसी मानव की जीत से
स्नेह बलिदान होंगे माप नरता के एक ,
धरती मनुष्य की बनेगी स्वर्ग प्रीती से .'