रविवार, 5 अक्तूबर 2008

सुमित्रा नंदन पंत जी की पंक्तियाँ

कौन बनाता है ये समाज

महाभाव की स्वर संगति में, गूँथ विश्व को,

एक नया अलोक उतरता , भू आँगन पर।

नए रक्त से हृदये शिरयिएँ होती झंकृत

अंतर का उन्मेष लाँघ बाधा के पर्वत

नव समाज को देता जन्म डूबा स्वार्थों को,

नई ज्योति लिखती मानव के जीवन मन की

गाथा, अभिनव भावों के इतिहास पृष्ट पर.