कौन बनाता है ये समाज
महाभाव की स्वर संगति में, गूँथ विश्व को,
एक नया अलोक उतरता , भू आँगन पर।
नए रक्त से हृदये शिरयिएँ होती झंकृत
अंतर का उन्मेष लाँघ बाधा के पर्वत
नव समाज को देता जन्म डूबा स्वार्थों को,
नई ज्योति लिखती मानव के जीवन मन की
गाथा, अभिनव भावों के इतिहास पृष्ट पर.